ख़्वाब को हकीकत बनाने चला हूँ



( फोटो 2011, जब ये लाइनें लिखी थी) 


इज्जत, शौहरत, चाहत, नफ़रत

इनकी फ़िक्र अब कहाँ है मुझे

मैं तो एक चिंगारी जलाने चला हूँ

ख़्वाब को हकीकत बनाने चला हूँ...


अब ना दिल के नगाड़ों का शोर

न ही है विचारों के द्वंद का जोर

मैं तो एक हिम्मत जुटाने चला हूँ

ख़्वाब को हकीकत बनाने चला हूँ...


दुनिया के मेले में बेवफ़ाई के रेले

जो थे बे-ईमां, वो भी खूब खेले

इन फ़िज़ाओं में चलते, हौंसलों में पलते

शमशानों सी सूनी, बाजारों सी उलझी

सितारों की दुनिया बसाने चला हूँ...


ना खंजर का डर है, परिंदों से पर हैं

ये कोशिश नहीं है, है ये एक चुनौती

इस चुनौती में खुद को मिटाने चला हूँ

ख़्वाब को हकीकत बनाने चला हूँ...


नजारे हैं बंजर, चुनौतियों का समंदर

पर इरादें हैं पत्थर, चाहे हो जो भी मंजर 

बस इरादों से दुनिया हिलाने चला हूँ

खंडहरों से इमारत बनाने चला हूँ...


ये यमुना की मिट्टी जो है सर्द मुझमें

कर्ज इसी का मैं चुकाने चला हूँ

जो बहता रगों में है खून उस से

इतिहास के पन्ने सजाने चला हूँ...


अनिश्चित था कल, अनिश्चित है कल

यूँ तो है जिंदगी का अनिश्चित हर पल

भुलाकर हर ठोकर, मिटाकर हर किस्सा

बस इस पल को अपना बनाने चला हूँ...


फितरत जो अब हो चली है ज़ुनूनी

इसी शौक़ में ख़ाक हो जाने चला हूँ

जरा सी तो ज़ुर्रत दिखाने चला हूँ


बस, एक ख़्वाब को हकीकत बनाने चला हूँ। 


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